न्यूयॉर्क, प्रेट्र। क्या आप अपने जीवन में तनाव महूसस कर रहे हैं? अगर हां तो आपको एक छोटी कोशिश करनी होगी। ऐसी जगह जो प्रकृति का अहसास दे, वहां पर महज 10 मिनट बिताने से आपके तनाव के स्तर में कमी आ सकती है। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। कॉलेज के विद्यार्थियों पर किए गए अध्ययन में पाया गया है कि सिर्फ 10 मिनट ऐसा करने के बाद शारीरिक और मानसिक, दोनों की स्तर पर तनाव में कमी आई।
फ्रंटियर्स इन साइकोलॉजी जर्नल में प्रकाशित शोध का उद्देश्य तनाव, चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक परेशानी को आसानी से दूर करना है। शोधकर्ताओं का कहना है कि फौरी राहत के लिए डॉक्टर लोगों को ऐसा करने की सलाह दे सकते हैं। अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के जेन मेरेडिथ का कहना है कि सकारात्मक लाभ मिलने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। महज 10 मिनट आपको वैसी जगह पर बिताने की जरूरत है जहां प्रकृति का अहसास हो। मेरिडिथ ने कहा, 'हम दृढ़ता से मानते हैं कि प्रत्येक छात्र, चाहे वह किसी भी विषय का हो या उसके काम का बोझ कितना भी अधिक क्यों न हो, उसे रोजाना या सप्ताह में कुछ एक बार इस प्रक्रिया को अपनाना चाहिए।'
रक्तचाप और ह्रदय गति में भी होता है सुधार
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान 15 से 30 साल के कॉलेज के छात्रों पर प्रकृति के प्रभावों की जांच की। शोध का मकसद यह पता करना था कि छात्रों को कितनी देर बाहर रहना चाहिए और इस दौरान उन्हें क्या करना चाहिए। शोधकर्ताओं ने पाया कि 10 से 50 मिनट का वक्त प्राकृतिक स्थानों पर बिताने से मनोदशा सुधरती है। साथ ही साथ ध्यान केंद्रित में आसानी होती है और रक्तचाप और हृदय गति में भी सुधार होता है। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डोनाल्ड राकोव ने बताया कि ऐसा नहीं है कि 50 मिनट के बाद इन सबमें गिरावट आती है, लेकिन शोध में पता चला है कि इसके बाद स्थिति स्थिर हो जाती है।
प्रकृति में बैठने या चलने की आवश्यकता होती है
स्कूलों में इसे लागू करने की सिफारिश करते हुए शोधकर्ताओं ने बताया कि बाहर रहते हुए, छात्रों को सकारात्मक प्रभाव का आनंद लेने के लिए केवल बैठने या चलने की आवश्यकता होती है। राकोव ने इसका कारण बताते हुए कहा कि ऐसा कर हम प्रकृति तक पहुंच को सरल और साध्य बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक बाहरी कार्यक्रमों को लेकर बहुत अधिक शोध परिणाम मौजूद हैं, लेकिन हम इसे मिनटों तक ही सीमित करना चाहते थे इसलिए यह शोध किया गया।
शोधकर्ताओं ने कहा कि अब जरूरत है कि इसके लिए विद्यार्थियों को जागरूक किया जाए। ऐसा करके ही हम उनके शारीरिक और मानसिक क्षमता को बेहतर बना सकेंगे। वे यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि जब इसे विश्र्वविद्यालयों में लागू किया जाएगा तो यह विद्यार्थियों के दिनचर्या का हिस्सा बन जाएगा और फिर यह नियमित खुराक की तरह काम करेगा।