टीन एजर नहीं रही अब इक्कीसवीं सदी (व्यंग्य)



उन्नीस साल का आम व्यक्ति अपनी सोच, व्यवहार और उपलब्धियों से देश को सम्मान दिलाने और गौरव का अहसास कराने में सफल रहे वहीं अधेड़ उम्र के अनेक नेता और साधु-साध्वी इस टीन एज के अंतिम साल में खुद को बचकाना और अपरिपक्व सिद्ध कर देश को शर्मसार करते रहे।




सभी जानते हैं उमर का सोलहवाँ साल बड़ा नाज़ुक होता है- एकदम मस्त-मस्त और स्वीट-स्वीट। सपने देखने का और दूसरों के सपनों में आने-जाने का। नखरे दिखाने का और नखरे दिखा-दिखा कर रिझाने का, पर उन्नीसवें साल के बारे में किसी ने न तो ऐसी सुखद और मनोहारी बातें लिखीं और न ही इस विषय में ढंग से शोधकार्य किया। दरअसल ये साल टीन एज से बाहर निकलने का साल होता है। इस उमर में एक अलग तरह का आत्मविश्वास आ जाता है, सोचने समझने में परिपक्वता आ जाती है, कुछ नया करने का मन होने लगता है और नए-नए शोध कार्यों के प्रति उत्सुकता जागने लगती है। टू थाउजेण्ड नाइण्टीन को ही लें- इस साल की समाप्ति के साथ ही न केवल इक्कीसवीं सदी की टीन एज अवधि समाप्त हो रही है अपितु कुछ विसंगतियों के साथ उक्त चारों बातें भी देखने को मिलीं।

 


सबसे पहले बात आत्मविश्वास की। इस साल विदिशा बलियान ने मिस डीफ वर्ल्ड स्पर्द्धा जीत कर दिखाया कि आत्मविश्वास हो तो बहरे लोग भी कमाल का काम कर सकते हैं। राजनीति भी ऐसा ही कमाल करने की तैयारी में दिखी। बम्पर बहुमत मिल जाए तो सरकारें भी इतनी आत्मविश्वासी हो जाती हैं कि जनता की आवाज भी उसे सुनाई नहीं देती। विदिशा की तरह बहरे होने और विश्व सिरमौर बनने का उदाहरण उसे बहरे बने रहने को प्रेरित करता है।

 

उन्नीस साल का आम व्यक्ति अपनी सोच, व्यवहार और उपलब्धियों से देश को सम्मान दिलाने और गौरव का अहसास कराने में सफल रहे वहीं अधेड़ उम्र के अनेक नेता और साधु-साध्वी इस टीन एज के अंतिम साल में खुद को बचकाना और अपरिपक्व सिद्ध कर देश को शर्मसार करते रहे। उन्नीस साल की हिमा दास जहाँ एथलेटिक्स में एक के बाद एक गोल्ड मेडल जीतते दिखी वहीं टीनएज शूटर मनु भाखर ने पाँच विश्वकप स्पर्द्धाओं में स्वर्ण पदक जीत कर देश के लिए यश कमाया। वैश्विक स्तर पर बात करें तो स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग की पर्यावरण सम्बन्धी चिंताओं को समूची दुनिया ने ध्यान से सुना। दूसरी ओर एक साध्वी ने बताया कि उनके शाप की शक्ति से एक कर्तव्यपरायण पुलिस अफसर को इहलोक छोड़ कर जाना पड़ा। कुछ समय बाद उन्होंने अपनी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के निधन पर विपक्षी पार्टियों पर आरोप लगाया कि वे उनकी पार्टी के नेताओं के लिए मारक यंत्र का प्रयोग कर रही हैं। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त बहुत लम्बी है जिसमें हर पार्टी के तथाकथित दिग्गजों ने अपने बचकाना बयानों से शर्मसार किया।

 

इस साल हैदराबाद की इरामती मंगम्मा का मन हुआ कि उन्हें दुनिया की सबसे वयोवृद्ध माँ बनना है और उन्होंने इस हैरतअंगेज करिश्मे को कर दिखाया। शादी के 57 साल बाद 74 साल की उम्र में मंगम्मा ने जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया और इतिहास रच दिया। दूसरी तरफ भूतपूर्व मंत्री रहे एक 72 वर्षीय स्वामी जी बलात्कार के आरोप में जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं। इस विसंगति में भी इस टीन-एजर साल का ही प्रभाव है।

 

इस साल कुछ अद्भुत शोधपूर्ण बातें भी सामने आईं। एक तो गलतियों को माफ करने में छुपी गूढ़ता को लोग जानने लगे हैं। अभी तक माफ करने और दिल से माफ करने के फर्क पर भाषाविदों तक का ध्यान नहीं गया था, अब गया तो वे शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं। साल जाते-जाते कपड़ों से लोगों की पहिचान सुनिश्चित करने का नया आइडिया भी मिला। अब जिम्मेदारी समाजशास्त्रियों पर है कि वे इस पर चिंतन करें और इसे सही सिद्ध करके दिखाएँ।

 

अरुण अर्णव खरे